🚩✍🏻 एक दन्त कथा ।
करणी जी देशनोक क्यों आये ?----------------------------------------
कहते हैं कि प्राचीन काल में एक समय शंकर भगवान व माँ पार्वती
पृथ्वी लोक में विचरण कर रहै थे,
घूमते घूमते एक निर्जन घने जंगल से होकर गुज़र रहै थे, वह स्थान अत्यन्त मनोहर व रमणीय स्थल था, जहां पर बाळू के टीबे,
झाङीयें, खेजङी वृक घने पेङ पौधे थे , वह स्थान अत्यन्त सुन्दर था, जहां पर थार (ताल) व रमणीक रेत के टीबे (धोरे) थे ।
माता पार्वती को वह स्थान मन भा गया,
विचरण करते हुए जैसे जैसे ही वे दोनो उस रमणीक स्थल पर पहुचे तब माँ पार्वती ने शंकर भगवान से कहा, भगवन मै चलते चलते बहुत थक गई हूँ और यह जगह भी बहुत सुन्दर है हम कुछ समय के लिए यहाँ विश्राम करते हैं ।
तब भगवान शंकर ने कहा देवी सुन, यह पृथ्वी लोक है यहाँ बहुत सी जगह, अनेक नदी नाले पर्वत झरने देखने को मिलेंगे कब तक पृथ्वी लोक में विचरण करते रहेंगे,चलो हम चलते हैं ।
ऐसा कहकर भगवान शंकर वहां से रवाना हो गये, व पार्वती भी साथ साथ रवाना हो गई, जाते जाते माँ पार्वती ने शंकर भगवान से कहा कि इस जगह मै दुबारा आऊंगी ।
यह(देशनोक) वही जगह है जहाँ से भगवान शंकर व माँ पार्वती घूमते हुए निकले थे ।
और माँ पार्वती ने अपना वचन (इस जगह मै दुबारा आऊंगी) सत्य करने के लिए माँ करणी के रूप मे अवतार लिया ।
और इसी स्थान पर आकर देशनोक गांव बसाया ।
उधर साठीका मे केळु जी के घर देपोजी भी शंकर भगवान के अंशावतार थे ।इसलिए देपोजी शिवजी के भक्त थे व माँ करणी ने पार्वती का पूर्ण कला मे अवतार लिया था अतः माँ हिंगलाज (आवङ जी) की सेवा करते थे ।
बोलो करणी माता की जै ।
माँ भवानी की जै 🚩🚩🚩🚩
सांवल दान 🙏🏽🙏🏽
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