Kavi prahlad singh kavia pranjal

कवि प्रह्लाद सिंह कविया प्रांजल रचना कोष:-



करणीमाता के दोहे छंद सौरठे व चिरजाएँ:-

(1)
पाप को विनाशे वनराज सी हूंकार भरे 
सहस्त्र गजों सा बल जिसकी भुजाओं में
दश दिश तीन लौक चौदह भवन बिच
सब कुछ बसता है मात की निगाहों में
पूत हो कपूत चाहे मां का दिल दरियाव
काबा कर राख मढ़ अपनी पनाहों में 
कंटक भरा है पथ सारथी ना कोई रथ
होगी भला कौन गत डरता हूँ राहों में 
                प्रांजल

(2)

करणी मां धड़कन मेरी ,करणी मां मम स्वांस 
करणी मां अंतिम घड़ी ,करणी मां विश्वास 
 प्रांजल


(3)
 विपदा के क्षण दोय ही, मां की देखी बात
धन धीरज का दे दिया, रखा शीश पर हाथ
            प्रांजल
         🙏🙏🙏🚩🙏🙏

(4)
 दे करणी* पर ध्यान भी, रटजे करणी** मात
चिणबा जीवन रो महल, करणी***मां रै हाथ 
             प्रांजल 
करणी *.... कर्म
करणी**..... करणी माता
करणी***... एक उपकरण

(5)
 अबखी बेला आ गयी, अबकी बार उबार
सबकी सुनती शंकरी, सुन मेरी भी पुकार
           प्रांजल
       🙏🙏🙏🚩🙏🙏🙏


(6)
हाफिज हैरी और हरी, हरविंदर हरराम 
सब धर्मों की देवता, करणी ज्यां रो नाम
           प्रांजल
       🙏🙏🙏🚩🙏🙏🙏

(7)
छू रघुवर के चरण ज्यों, तरी अहिल्या नार
शीश झुका करणी शरण, हो ज्यागा भव पार
         प्रांजल
     🙏🙏🙏🚩🙏🙏🙏

(8)
आ गया फागुन मधुर, होली की हुड़दंग
मां मुझको भी लगाइये तव चरणों का रंग
प्रांजल

(9)
देवी रै दरबार में, जागै जगमग जौत
भगतां री झोली भरै, दुष्ट्यां चलै करोत
        🙏प्रांजल 🙏

(10)
देवी रै दरबार में, अन्न-धन रा भंडार
भिक्षुक बण थे मांगल्यो होसी बेड़ा पार
       प्रांजल

(11)
देवी रे दरबार में, जाकर ल्यो आशीष
मां री जो किरपा मिलै, तो पौ बारा पच्चीस
             प्रांजल

(12)
देवी रै दरबार में, खेलै मूषक राज
लाडू पेड़ा लापसी, जीम रिया महाराज
        प्रांजल

(13)
देवी दरबार में, जो भी आय फकीर
पाय अमीरी जायसी खुल ज्यागी तकदीर
            प्रांजल

(14)
देवी रे दरबार में, आय चढास्यूं फेर
ड्यूटी जाणूं डोकरी, हणै हो रही देर
        प्रांजल



(15)
जद जद भी लब ऊपरे, मेहाई रो नाम
आयो इमरत री जड़ी, बण्या बिगड़ता काम
         प्रांजल

(16)
हियो उडीकै आपनै, नैण निहारै राह
टाबरियां री खोड़ला, कर थोड़ी परवाह
         प्रांजल

(17)
सार करीज्यो सैणला, करणी सारो काज
आंगण आओ आवड़ा, गीगाई महाराज.
          प्रांजल

(18)
स्वार्थ को जो त्यागता, बनता है वो सिद्ध
स्वार्थ के किरदार तो, औढ़े लाखों गिद्ध


हो जाते है हीन भी, दुनिया में प्रसिद्ध
लेकिन जग को जीतते, जो रखते है जिद्द

जिद्द रखते हैं सांच की, आंच न आती कोय
जो जपते है इस धरा, देव विहाने दोय

एक नाम करणी भजै, एक नाम इंद्रेश
उनका कोई क्या करे, राग बैर अरु द्वेश
        प्रांजल

(19)
राजल मां रजपूत री, गयी बचावण आण
नवरोजा नौंच्या सगत, बणकर के वनराज
        प्रांजल

(20)
सिंह चढै़ सिंह ही बणै, सिंह जिस्यो किरदार
बिकाणै रे देश में, करणी री सरकार
         प्रांजल


(21)
मात बणो थे सारथी करो सुगम पथ मोय
निर्बल रै चढ़बा मदद, आय न थां बिन कोय

         प्रांजल

(22) चिरजा
लाखण डूब्यो लाडलो ,जद कोलायत मांय
सिंह चढ़्योडी मावडी , पूछ्यो जम नैं जाय 

रै जमराजा के गयो ,तूं जीवण सूं धाप 
म्हारो टाबर लावियो ,कियां करयो ओ पाप 

आख्यां मांही क्रोध ले ,धरियो रूप विराट 
डोलण लग्या दगाल सूं ,तिनां लोकां पाट  

जम खड्यो कर जोड़ के ,थर थर कांपै आज 
इंद्र भयो विचलित घणो, धूजण लाग्यो ताज 

अवढरदानी ध्यान सूं ,दिनी पलक उघाड़ 
खींचण सारू कुण खड़ी,काल रूप कै बाड़

पछै ध्यान आयो जरा ,अंब सती रो रूप 
देख मंद मुस्का रियो ,शंकर सती सरूप 

दृश्य अजब देखण हितां ,खड्यो अटल सुर लोक 
रूप विहाणो देखकर ,लुल लुल देवै धोक  

जम कहवै हे मावड़ी ,अ विधना रा लेख 
टाल सकूं ना अंबिका , मैं नियमां री रेख 

आंख्यां अगनी क्रोध री, भरयां दकालै काल 
सिंह सवारी सिंहणी ,किनियाणी किरपाल 

जमराजा सुण आज तूं ,कान खोल कर बात
अबसैं थारै आंगणैं, आवै कोनी पात 

आज तनैं बदल्यां सरै विधना वाला लेख 
किनियाणी रै नाम रा लिख तूं नव आलेख

म्हारा जायोडा़ सदा करसी मढ में मौज 
काबा हो दीदार बै  करसी म्हारा रोज 

लाखण ल्यायी साथ में,किनियाणी किरतार 
दशों दिशावां हो रही ,मां री जय जय कार 
        प्रांजल

(23) फाल्गुन स्पेशल चिरजा

दिवलो चांदी रो ,करणी माता रो प्यारो लागै सा 
दिवलो चांदी रो 
प्यारो लागै सा ज्योत नवखंड में जागै सा 
दिवलो चांदी रो ....

1  तीन सौ किलो  चांदी रो ,हीरा मोत्यां जड़ियो सा ...2
अन्नदाता रो दीप सवायो,भालो घड़ियों सा 
दिवलो चांदी रो 

2. खेलै मढ़ में रास करनला नवलख सगत्यां सागै सा
घूघरिया घमकातो भैरूं नाचैं आगै सा.....
दिवलो चांदी रो...

3  देशाणै में धाम मात रो,काबा री किलकारी सा
संगमरमर रो बण्यो देवरो,शोभा  प्यारी सा
दिवलो चांदी रो .....
          

4.  देशनोक आ पावन भूमि,केशर की सी क्यारी सा
जठै बिराजै मोटी मायड़,मेहदुलारी सा
दिवलो चांदी रो..... 

5.....सुणज्यो मन री बात  मावड़ी ,प्रांजल आज मनावै सा
अमृत हरासर मायड़ थारो  दिवलो गावै सा 
दिवलो चांदी रो

     प्रहलाद सिंह कविया प्रांजल
           भवानीपुरा


(24)
करणी भगती रै समद उतर बिनां घबराय
जो बचसी बो डूबसी जो उतरै तिर ज्याय 
     प्रांजल

(25)
पाछा आवो करनला भौम उतारण भार
जग में थरपो जोगणी सत्य री सरकार
        प्रांजल

(26)
तलवार धरे कर शीश मणी,मुख ऊपर लाखहि सूर तपै 
वनराज चढै़ हरणी दुख री,लपटां शुभ ज्योत आकाश छपै 
रज चरणां धरणै भाल सदा,सुरलोक खड्यो नत  जाप जपै 
जद पाप विनाषण कोप करै,डरपै अरि दानव वंश खपै 
               प्रांजल

(27)
मत मात कर्या सुत दूर कदै,अपने चरणां मम ठौर दियो 
भर भाव विनीत मनां करणी,जप का धन मायड़ मोय दियो 
जद भी मन लोभ करे सगती,भगती मधु पावन दान दियो 
अरजी सुण टाबर री पल में,बिसर्या मत लोवड़ ओट लियो 
                  प्रांजल

(28)
सौम्य रूप :
छम छम पायल बाजणी,पगल्यां बिछिया जोर 
माथै टीको मोहनो, करतो भाव विभोर 

कर गजदंतो चूड़लौ ,बंगड़ी रतन जड़ाय
हाथां मेहंदी राचणी,भुजबंद मनड़ै भाय 

काजल कजरारा कर्या ,सृष्टी नैन समाय 
निजर कटारी सी लगै,बिजली ओला खाय 

धारी स्वर्णिम पावड़ी ,लोवड़ लाखी ओढ 
चरणां मांही आ खड्या ,सुर तेतीस करोड़

उग्र रूप
एक हाथ त्रिशूल तो,दूजै कर तलवार 
दानव दल में मच गयो ,जबरो हाहाकार 

मुंड काटती झूंड का ,खंड खंड कर्या समूच 
दुष्टी जन करणै लग्या ,भूमंडल सैं कूच 

सिंह चढ़्योडी सिंहणी ,रूप धर्यो विकराल 
निती हर्ता रा हुया,हाल घणा  बेहाल 

बण महिषासुर मर्दिनी , बणी डोकरी काल 
भीतर के मद लोभ को, भी हरती तत्काल 

बैरी दल को देखती ,करणी आंख तरेर 
पापी जन की ना कभी ,करती अंबा खेर 

जंगां मांही जूझता ,जद भी देख्या लाल 
बण वनराजा टूटगी, अरिदल पर भूचाल 

भक्त वत्सल :

जो भी राखै ध्यावना ,भजै मात को नाम 
उणरै हाजिर मावडी़,ज्यो मीरां कै श्याम 

पूजा में बस भाव हो, माफ समूची काण 
आधै हेलै आय मां ,याद करंता पाण 

हिवडैं में दीपक करो ,नैणा मांही जौत 
भावां री बाती कर्यां , राजी मैया भोत 

करणी रै दरबार आ, मत भव में भरमाय 
डाढ्याली रै द्वार सूं कोई न खाली जाय 
               प्रांजल


(29)
मुश्किल राहें धर्म की, होना नहीं अधीर 
चलती सदा अधर्म पे, करणी की शमशीर

पहिया चलता वक्त का, कर देता सब हल
मन का मैल उतारिये, होकर सहज सरल

दुनिया का ढांचा अजब, अजब समूचा रूट
मीरा को पीने पड़े, यहां गरल के घूंट 

चलते जाओ तुम सतत, हो चरणों की धूल
इक भगती आपकी, होगी अवस कुबूल

गिरना उठना क्रम है, चलना अपना धर्म
मात हृदय में दीजिये, मानवता का मर्म 
            🚩🙏प्रांजल🙏🚩


(30)

दर देखा जबसे करनल का, मुझे नजर ना आता और कोई
पाई दौलत धूली चरणों की क्या छीने मुझसे चोर कोई 

मन में मेहाई नाम बसा, इन नयनों चितराम तेरा 
कुछ और नहीं मांगू मैया, बस इतना करदो काम मेरा 
बिन दर्शन बिन रटना तेरी, मेरी एक ना गुजरे भोर कोई 
दर देखा जबसे..... 

काबा ना सही ना कबूतर भी, लेकिन कुछ तो प्रबंध करो
उपकार दास इस निर्धन पे, थोड़ा सा मां भुजलंब करो 
करो वृक्ष आपकी औरण का, दो देशनोक में ठौड़ कोई 
दर देखा जबसे.... 

ब्रह्मा के मुख की वाणी तुम, मां पावन पाक महुर्त हो 
चहूं और तेरी सकलाई मां, करणी किरपा की मूरत हो 
छू पाते ना मां के भगतों को, दुख दारुण विपद कठोर कोई 
दर देखा जबसे..... 

       प्रह्लाद कविया प्रांजल

(31)
सुवाप गांव में जन्म लियो देपा घर मायड़ परणाई
सुण साद सदा सेवक की मां अरजी सूं पैली है आई
जग पूज रियो थांनै सुण सुण चिरजा में थारी सकलाई
कर ल्यो मां चाकर चरणां रो एक ठोड़ भजण नैं बगसाई 
      प्रांजल

(32)
सुत शेख गयो जद जेल महीं, होय संवली नभ मंडराय  रही
मझ कूप दीन जद टेर करी, दुंभी बण लाव जुडाय रही
हित गाय रही हाजर हरदम, बैरयां का भख मां खाय रही
भगतां की है भीरू ममताली, बस याद करंता आय रही
      प्रांजल

(33)चिरजा

तर्ज : नब्जीया बैद क्या देखै मुझे दिल की बिमारी

किसी का धाम क्या जानूं, 
मुझे मां का सहारा है
किसी का नाम क्या जानूं
मुझे मां ने उबारा है


जगत की जोगणी अम्बा , भगत की भाविनी अम्बा 
दास का मोह लिया मनवा, आ है मनभाविणी अम्बा 
संहारै कौन डर मुझको, मुझे मां ने संवारा है 
किसी का नाम क्या जानूं, मुझे मां का सहारा है 

देश री नाक देशाणूं, जठै मां को भवन प्यारो 
दिशावां दश में किरपालु, फैल रयो माता उजियारो 
अ थारा दरश डाढ्याली ,भगत नैं लागै प्यारा है
 किसी का धाम क्या जानूं, मुझे मां का सहारा है 


मां औरण राचै बोरड़ियां, अ मीठा मोरीया बोलै
रमैं जोगी जंगल धरती, इंद्र सिंहासन जा डोलै
रात चवदस की रमबा नैं, देवता आवै सारा है
किसी का नाम क्या जानूं मुझे मां का सहारा है


मां मढ में काबा मतवाला, मस्त हो कूदता नांचैं 
द्वार पे पात बैठ्या है,  मात री कीरती बांचै 
सभी पे राखज्यो किरपा, सभी अ दास थारा है 
किसी का नाम क्या जानूं, मुझे मां का सहारा है 
मां प्रांजल की हरो पीड़ा, तुझे दिल से पुकारा है 


(34)

करणी मां धड़कन मेरी ,करणी मां मम स्वांस 
करणी मां अंतिम घड़ी ,करणी मां विश्वास 

    प्रांजल

(35)

करणी मां भख लीजिये, कोरोना कलू रूप
इस जग को उद्धारिये, ज्यों अणदो बिच कूप 
               प्रांजल

(36)
अबखी बेला आ गयी, अबकी बार उबार
सबकी सुनती शंकरी, सुन मेरी भी पुकार
           प्रांजल
       🙏🙏🙏🚩🙏🙏🙏



(37)
 आ गया फागुन मधुर, होली की हुड़दंग
मां मुझको भी लगाइये तव चरणों का रंग
        प्रांजल



(38)
 प्राची में सूरज उगा, हुयी नवल प्रभात 
दर्शन को द्वारे खड़े, जागो करणी मात 
          प्रांजल
🙏🙏🚩🙏🙏

(39)
देवी तूं दातार, ममता री मूरत भजै
आप तणो आधार,भगतां रै है करनला

         🙏प्रांजल 🙏

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सातम वाळी झाँकी

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  मामा म्हारै आंगण आय भैरवा रै मिणधर म्हारै आंगण आय भैरव मुख मंडल पर तेज करारो लांगडिया लटियाला भैरू दोन्यू भाई संग सदा ही ऊबा गौरा काला भैं...