Wednesday, 12 May 2021

New Deshbhakti Poem Tyag Samrpan

 1 सागर में लहरों सें हम है पतझड़ में शीतल जल हम है

तूफानों से भी टकराकर सीमा पर कायम भी हम है

हर मुश्किल सें टकरानें आये साथ छोड़ घरवालों का

त्याग समर्पण वो क्या जानें शरहद के रखवालों का।



2 हिम शिखर से गौरव बनकर हम आगें बढतें जाएं

बुलन्दियों के उच्च शिखर पर उत्तरोतर चढ़ते जाएं

वीरों सी हुंकार भरें और बलिदानों को याद करें

बुझे नही शहादत की सम्मा रोशन हम दिन रात करें

दर्द भरे कांटो के पथ पर हमको चलना आता है

जलती रहे वतन की सम्मा हमको हमको जलना आता है


दर्द बड़ा है इस दुनियां में सम्मा और परवानों का


त्याग समर्पण वो क्या जाने शरहद के रखवालों का


3 लड़ने को आगे है फिर भी,अमन चैन की बात करें

दुश्मन को हम धूल चटा दें, हिन्द देश सें प्यार करें

हिन्द देश का प्यार कहो या कहो देश का अपनापन

राष्ट्र प्रेम में पागल समझो या समझो दीवानापन

अजब खेल है इस दुनियां में पागल और दीवानों का

त्याग समर्पण वो क्या जानें शरहद के रखवालों का


4 मात पिता नारी सब छोड़े, और देश की आस करें

डगर डगर हम ग्राम नगर में जंगल जंगल वाष करें


क्षमा दया और शीलता बसै हमारे तन मन में

अंगारो सी आग धधकती जोश जवानी यौवन में


जोश जवानी और बढ़ाएं वीरों का गुणगान करें

देश के स्वर्णिम पन्नों में एक नूतन सा इतिहास बनें

मूल्य नहीं कोई दे सकता प्रहरी के जज्बातों का 

त्याग समर्पण वो क्या जानें शरहद के रखवालों का


5 आन बने हम, बान बनें हम और देश की शान बनें

शिवा,मराठा हिन्द केशरी जैसी एक पहचान बनें

इस काबिल हम खुद बन जाएं अपना देश महान बनें

कहे महेंद्र राष्ट्र ऋणी है वतन पे मिटने वालों का

त्याग समर्पण वो क्या जाने शरहद के रखवालों का

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