Friday, 12 July 2019

राधा रो रो नीर बहावै राजस्थानी गीत


राधा रो रो नीर बहावै,आज्या सांवरिया-2

 1कान्हा इक बर पाछो आज्या 
आकर मनड़े नै बहला जा
 एकर आजा रे गोपाला.....2 
धेन चरावणीया 
(टेर) .....


 2एकर आजा रे बनवारी 
राह निहारै राधा थांरी 
थांरी सूरत पर बलिहारी....2 
जाऊं सांवरिया
(टेर) .....


 3मोहन मुरली मधुर बजा जा 
आ गोपी संग रास रचा जा 
बेगो आजा रे निर्मोही....2 
मन भावणीयां
(टेर)......


4थारी सांवली सूरत निराली 
सोहे मौर पंख छवी प्यारी 
दरश दिखाओ कृष्ण मुरारी.......2
 जगत चलावणीया
(टेर) ......


5राधा पाणी भरबा आई 
मन मै श्याम मुरतिया भाई 
राधा ऐसी भई दीवानी.....2 
फूटी गागरिया
(टेर) .....


6बेगा आवो हे अविनाशी 
राधा तव चरणों की दासी 
जोगी ऐसा जोग लगाया.....2
 हो गयी जोगनिया
(टेर).....



7राधा झूर झूर नीर बहावै 
 जुल्मी संवारियो कद आवै 
कीरत महेंद्र कविया गावै.....2 
पार लगावणीया

(टेर).....

राजस्थानी गीत आज्या म्हारै जीव की जड़ी


थारी सोवणी सूरत मन भाय,कि आज्या म्हारै जीव री जड़ी(टेर)        PLAY



 1केशर की क्यारी सी लागै,नव रस नीर भरै तेरे आगे 
 छवि छंदों की मंद पड़ी,कि आज्या म्हारै जीव की जड़ी 


 2चन्द सो रूप कनक सी दमके,दिल घायल जद चुड़ी खनके 
 जाणै फुरसत मै राम घड़ी,कि आज्या म्हारै जीव की जड़ी 



3निजर थारी मदहोश बणावै,बिन मदिरा मदपान करावै 
लागै दाखां री मदिरा भरी,कि आज्या म्हारै जीव की जड़ी 



4इमरत जेड़ा बोल सुहावै,मोहनी सूरत घणी मन भावै 
लागी थांसूं म्हारी प्रीत कड़ी,कि आज्या म्हारै जीव की जड़ी 


 5रूप देख भंवरा मंडरावै,जोध जवानी झोला खावै 
लागै फुलां री नरम कळी,कि आज्या म्हारै जीव की जड़ी 



6जद चालै चुनरी लहरावै,पायलड़ी दिन रैन जगावै 
थारी चाहत मैं नींद उड़ी,कि आज्या म्हारै जीव की जड़ी
            

गीत रँग वाळी रात


गीत-रंग वाळी रात।                                       PLAY

(तर्ज-छोटी सी उमर परणाई ओ बाबोसा)       

                       



रंग वाळी रात,बिताई रूड़ा मेहलां सूखो पड़ियो,हरियो बाग(टेर) 


1पाणीड़ो भरबा नै,पनघट निसरी प्यास जगी जोबन री 
बो निर्मोही कांई विरह पिछाणै जाय बस्यो है परदेश 


2सिर रो घड़ो,सब सखियां भरै है रीति है गागर मन री 
मन लोभीडो,कोई केहणो न मानै भँवर बसै है परदेश


 3सावण सुरंगों पिया,जोबन हठीलो सा जुल्मी नै कुण बिलमावै सा सजन बिना कुण कण्ठ लगावै विरहन करत पुकार 


 4मन भावन सावण जद आयो बोलै है कोयल प्यारी 
कोयल बोल कटारी सा लागै विरह सुणै ना कोय 


 5मन बेहलावण बागां गयी ही देख्या फुलड़ा भारी 
दमडा रो लोभी परदेश बसै है कांई म्हारै फुलड़ा रो मोल 



 6सोळा सिणगारी,पिया सुरमो सार्यो मरवण सेज सँवारे सा 
बलम बिना सूनी सेजड़ली कद निरखोला मोय 



 7सुण कुरजा,म्हारो भँवर मिला दो विरहन बाट निहारै सा 
कगलिया तूं गेहरो बोलिजे कठै तो सुणेला म्हारो पिव


             महेंद्र सिंह

                 भवानीपुरा

राजस्थानी कविता रँग

कविता 

 रँग रूड़ो रँग सांतरो,रँग ही राचै रास 
जीण रँग मै जीवन रच्यो,वो रँग रूड़ो खास 

 मोहक रँग है प्रेम रो,मारू मरवण साथ 
प्रीत रँग मै रँग रिया,रख हाथां मै हाथ 


 रख हाथां मै हाथ,गीत मिलण रा गावै 
प्रीत मै रँग दे सायबा,यो रँग कदे ना जावै


 बादळ गरजै बरखा बरसै,बीजळी ओला खावै
 सेजा नार पिया बिन तरसै,छैल भँवर कद आवै 


 सावण मै कोयल जद बोलै ,मीठा गीत सुणावै 
कोयल बोल कटारी लागै,ओ रँगड़ो नहीं भावै 


 चावो रँग है रण भूमि रो,जे कोई रँग लगावै 
प्रेम प्यार का सगळा ही रँग,इण रँग मै रळ ज्यावै 


 केशरिया रँग जो कोई रँग ले,शीश रक्त रो टीको
 सांचो रँग कोई रंगै शूरमा,बाकी सब रँग फीको

महेंद्र सिंह कविया

सातम वाळी झाँकी

मामा म्हारै आंगण आव भैरवा चिरजा लिरिक्स

  मामा म्हारै आंगण आय भैरवा रै मिणधर म्हारै आंगण आय भैरव मुख मंडल पर तेज करारो लांगडिया लटियाला भैरू दोन्यू भाई संग सदा ही ऊबा गौरा काला भैं...